देश भर में ट्रांसजेंडर समुदाय के पांच लाख से ज्यादा लोग रहते हैं। ये संगठित नहीं है, राशन कार्ड जैसे जरूरी दस्तावेज भी इनके पास नहीं हैं, बधाई के सहारे दिन गुजारने वाले ये लोग इस समय भयानक संकट में हैं। हो सके तो इन तक मदद पहुंचाइए।
ट्रेन या बस में चढ़ते ही आप इनकी तालियों से इन्हें पहचान लेते हैं। कभी सिग्नल पर इनकी आवाज सुनते ही आप अपनी कार के शीशे चढ़ाकर कन्नी काट जाना चाहते हैं। और कभी किसी घर में बच्चे का जन्म हुआ हो, शादी हुई हो तो वे बधाई गाते, नाचते चले आते हैं। आप भी अपनी खुशी, इच्छा और सामर्थ्य से उन्हें बधाई दे देते हैं। पर इस समय कोरोना के समय में जब सारी दुनिया दहशत में है, बधाई कहां और कैसे गाई जा सकती है।
दरअसल, आपके परिवार को सुख-समृद्धि का आशीष देने वाले ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग इस समय भयानक आर्थिक संकट में हैं। इनकी थाली में भोजन नहीं है और तालियां खामोश हो गई हैं। कुछ की हालत तो ऐसी है कि दो दिन से खाने को भोजन नहीं है। अगर हो सके तो अपने आसपास मौजूद ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों की मदद करें।
भारत भर में तकरीबन पांच़ लाख लोग ट्रांसजेंडर समुदाय के हैं, जिन्हें आम भाषा में हम आप किन्नर भी कह देते हैं। आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े इस समुदाय के लोग इस समय भयंकर आर्थिक संकट में हैं। डर, आशंका और असुरक्षा के चलते एक अलग तरह का मानसिक अवसाद भी इन्हें झेलना पड़ रहा है।
‘दोस्ताना सफर’ संगठन की सचिव रेशमा ने एक वीडियो जारी कर लोगों से मदद की अपील की है, जिसमें उन्होंने अपने समुदाय को असहाय और मुश्किल में बताया है। बता दें कि दोस्ताना सफर बिहार के ट्रांसजेंडर समुदाय का संगठन है। इस संगठन से 1500 ट्रांसजेंडर जुड़े हुए हैं। ये वो लोग हैं जो जागरुक हैं और संगठित हैं। जबकि बिहार में ही इनकी वास्तविक संख्या चालीस हजार के पार है, जिनकी आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक स्थिति बेहद सोचनीय है।
इनमें से कुछ लोग शहरों, कस्बों आदि में बधाई गाने का काम करते हैं। जबकि ऐसे लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है, जो ट्रेनों और बसों में भीख मांगकर रोजी रोटी कमाते हैं। ये रोज कमाते हैं, रोज खाते हैं। किसी तरह किराए पर कमरा लेकर समूह में रहते हैं। एक दिन न निकलें तो अगले दिन की रोटी के लिए सोचना पड़ता है। इनसे भी ज्याकदा स्थिति चिंताजनक उनकी है जो गांवों में नाच-गाकर गुजारा करते हैं। बिदेसिया आदि की परंपरा के साथ ही शादी-ब्याह में नाच गाकर भी ये अपनी रोटी कमाते हैं। पर इन दिनों में इन तीनों ही वर्गों के किन्ननरों के लिए हालात बेहद चिंताजनक हो गए हैं।
दिल्लीं में रुद्राणी और रवीना इस समुदाय के लोगों के लिए काम कर रहीं हैं। पर स्वास्थ्य आपातकाल और कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन में इनकी हिम्मत भी जवाब दे गई है। इन्हें समझ नहीं आ रहा कि किस तरह समुदाय के लोगों का आर्थिक और भावनात्मक संबल बनाए रखा जाए। वर्क फ्रॉम होम जैसी लग्जरी सुविधा इनके लिए नहीं है। राशन कार्ड, बैंक अकाउंट आदि जैसे जरूरी दस्तावेज न होने के कारण अधिकांश लोगों को सरकार की ओर से जारी कल्याणकारी योजना का भी लाभ नहीं मिल पाता है।
“रेशमा ने एक वीडियो जारी कर अपने ऐसे ही साथियों के लिए मदद मांगी है। उन्होंने कहा है कि कोरोना के चलते लॉकडाउन में हमारे साथी अपने घरों में बंद हो गए हैं। उनके पास धन और अन्न का अभाव है। हम असहाय हैं और हमारा जीवन संकट में है। हमें बिहार सरकार की योजना का लाभ इसलिए नहीं मिल पा रहा क्योंकि हमारे पास राशन कार्ड और अन्य पहचान पत्र नहीं हैं।
हम माननीय मुख्यमंत्री जी से अनुरोध करते हैं कि हमारे बारे में भी संवेदनशीलता से सोचें। हम भी देश के नागरिक हैं और हम भी उतनी ही मुश्किल में हैं जितनी सारा देश। उनके पास इतने पैसे नहीं हैं कि वे बाजार जाकर कुछ खरीद सकें। अगर हो सके तो अपने हमारी मदद करें।” इसके साथ ही उन्होंने अन्य समाजसेवी संगठनों से भी मदद की गुहार लगाई है।
कोरोना के कारण उपजे स्वास्थ्य आपातकाल की इन पर दोहरी मार पड़ी है। बधाई आदि गाने वाले समुदाय के लोग जिनकी आर्थिक हालत थोड़ी बहुत ठीक है वे तो अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरुक हैं परंतु जिनके पास रोटी कमाने का ही मजबूत साधन नहीं है, वे साबुन, शैंपू, सेनिटाइजर, मास्का जैसी जरूरी चीजें कैसे खरीद पाएंगे। सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाडन से इनका काम धंधा तो चौपट हुआ ही, ये अपने समुदाय से भी जुड़ नहीं पा रहे हैं, जिससे कुछ मदद मांग सकें।
रेशमा ने बताया कि हमारे आसपास के कुछ लोग ऐसे हैं जिनके पास दो दिन से खाने को भोजन भी नहीं है। इनके पास बहुत पुराने तरह के मोबाइल हैं, जिनमें इंटरनेट की सुविधा भी नहीं है। वह भी समूह में किसी एक के पास होता है और अन्य पांच-छह लोग उसी का इस्तेमाल करते हैं। अभी हमने पास पड़ोस के मारवाड़ी परिवारों से मदद मांगी है, तो 70 लोगों के लिए राशन का बंदोबस्त हो पाया है। पर यह नाकाफी है। कुछ लोग बहुत दूर-दूर हैं, जिन तक हम अकेले मदद नहीं पहुंचा पाएंगे। इसलिए सरकार से गुजारिश है कि किसी तरह उन तक कुछ धन राशि पहुंचाएं जिससे वे अपने लिए राशन आदि खरीद सकें। साथ ही इन्हें स्वास्थ्य संबंधी जरूरी चीजें भी उपलब्ध करवाई जाएं।
डिस्क्लेमर: यह लेखक के निजी विचार हैं।
Courtesy: Amar Ujala | Image Courtesy: Impulse
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