तक्ष (Name Changed) को बचपन से ही अपनी पहचान को शक था। वह लड़का होकर भी अपनी बहन के कपड़ों में सजा करता था। तक्ष बड़ा होने पर भी नहीं समझ पाया कि वह लड़का या लड़की? तक्ष के पिता जान गए थे कि पुरुष के तौर पर उनका बेटा खुश नहीं है। अन्त में उन्होंने बेटे की ख्वाहिश पूरी कर दी। उसके 23वें जन्मदिन पर जेंडर चेंज कराने वाली सर्जरी की इजाजत दे दी।
तक्ष ने बताया कि माता-पिता का सहयोग नहीं मिलता तो वे शायद ही जीवित होते। तक्ष ने बृहस्पतिवार को अपना 23वां जन्मदिन भी मनाया। साथ ही उन्होंने देश के उन तमाम लोगों से अपील करते हुए कहा कि समाज की भ्रांतियां पर ध्यान न देकर इलाज पर फोकस करें और अपने बच्चों की मदद करें।
वायुसेना में डॉक्टर रहे संजय शर्मा ने बताया कि उनका बेटा तक्ष दो वर्ष की आयु में ही अपनी बहन के कपड़े पहनकर खेलता था। बहन की डॉल उसे बेहद पसंद थी। समय व्यतीत होता गया वे लोग भी उस लक्षणों को देख समझ नहीं सके। स्कूल में उनके बेटे का प्रदर्शन काफी बेहतर था।
डॉ. संजय का कहना है कि अन्य माता-पिता की तरह उन्हें भी इस स्थिति का सामना करना आसान नहीं था, लेकिन प्रकृति के इस तोहफे को उन्होंने कबूल किया और आज वे गर्व से कहते हैं कि वे भगवान ने उन्हें बेटा दिया लेकिन उसके रुप में एक बेटी भी दी। यही वजह है कि अब वे देश के उन तमाम बच्चों के लिए एक संगठन तैयार करने जा रहे हैं, जो ट्रांसजेंडर को हर तरह की मदद करेगा।
शालीमार बाग स्थित फोर्टिस अस्पताल में लिंग परिवर्तन कराने के बाद बृहस्पतिवार को आयोजित कॉन्फ्रेंस में लखनऊ निवासी कृतिका (22) ने बताया कि वे बचपन से ही अपने को अन्य लड़कों से अलग समझने लगे थे।
स्कूल और कॉलेज में उनका मजाक उड़ाया जाता था। साल 2013 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए वे दिल्ली आए, लेकिन यहां छात्रावास में कुछ साथियों ने कुकर्म करने का प्रयास भी किया। उन्होंने इसकी शिकायत काफी लोगों से की, लेकिन कहीं भी सुनवाई नहीं हुई।
चार वर्ष पहले सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सरकार ने भले ही गाइडलाइंस बना दी हों, लेकिन कृतिका का कहना है कि आज भी देश में सरकारी सिस्टम लापरवाही से भरा है। वे लंबे समय तक अपने ही देश में अपनी पहचान की मोहताज रहीं।
अस्पताल के डॉ. ऋचि गुप्ता ने बताया कि जेंडर डायस्फोरिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें एक व्यक्ति को लगातार गलत शरीर में होने की अनुभूति होती है। व्यक्ति का मस्तिष्क मौजूदा शरीर और जन्म के समय पर मिले लिंग के साथ टकराव का सामना करता रहता है।
न्यूरोलॉजिक, अनुवांशिक एवं हार्मोन की वजह से ऐसा होता है। ऐसे लोगों को मेडिकल में सर्जरी का विकल्प है। अन्य देशों में इसका इलाज भारत से कई गुना ज्यादा महंगा है। हार्मोन थेरेपी एक वर्ष तक देने के बाद सर्जरी की प्रक्रिया शुरू की जाती है।
Source: Amar Ujala | Image representative only | Image courtesy: dara hoffman-fox | image, entitled “Mirror” by The TGArtist,
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