पत्रकार, कलाकार, नेता कॉमेडियन या सामाजिक कार्यकर्ता कुमार शशि शाक्य को आज इन नामों से जरूर जाना जा रहा है लेकिन कुमार शशि शाक्य की एक और अलग पहचान है. किन्नर समाज को उनके अधिकार दिलाने के लिए भी शशि शाक्य का प्रयास बेहद ही सराहनीय है.
इसके साथ ही "एक और मेरी किन्नर दोस्त जो आईटी में स्नातक थी, बंगलूर की एक बड़ी आईटी कंपनी में पुरुष के तौर पर नौकरी करती थी...जब उसने प्रशासन से इजाजत लेकर लेडीज कपड़े पहनकर ऑफिस आना शुरू किया तो उसको नौकरी से हाथ धोना पड़ा और फिर उसने दिल्ली के एक रेड लाइट एरिये में भीख मांगना शुरू कर दिया"
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किन्नरों के प्रति समाज में फैले भेदभाव को मिटाने के लिए शशि शाक्य किन्नरों के साथ खाना खाते हैं, उन्हें अपने घर बुलाते और अपना जन्मदिन भी किन्नर समुदाय के लोगों के साथ ही मनाते हैं.
चाहे वोट का अधिकार हो, लिंग में 'अन्य कैटेगरी' का अधिकार हो शशि शाक्य ने किन्नरों को उनके अधिकार दिलाने में सराहनीय भूमिका अदा की है इसके साथ ही किन्नर समाज को रोजगार की व्यवस्था, किन्नरों के लिए अलग शौचालय की व्यवस्था और दिल्ली मैट्रो में किन्नरों के लिए बैठने के लिए सीट रिजर्वेशन जैसे कई मुद्दों पर कुमार शशि शाक्य एक अलग से अभियान चला रहे हैं.
शशि अपने पुराने अनुभव को याद करते हैं और ऐसी घटनाएं बताते हैं जिस कारण उन्होनें किन्नर समुदाय के लिए काम किया... शशि ने बताया "मेरे पास एक दिन फोन आया, एक किन्नर क्लिनिक पर बुखार की दवा लेने गई थी क्लिनिक की रिसेप्शनिस्ट ने उस किन्नर को क्लिनिक की छवि बचाने के लिए टॉयलेट में इंतजार करने को कहा... उस किन्नर ने मजबूरन ऐसा किया"
शशि ने nirvair.in को बताया कि ऐसी हीं घटनाओं के बाद उन्हें लगा कि अभी समाज में किन्नरों को स्थान दिलाने के लिए लोगों की मानसिकता बदलनी बेहद ही जरूरी है.
कुमार शशि शाक्य आज देश के तकरीबन 1500 किन्नरों के सम्पर्क में हैं और किन्नर समुदाय से जुड़े अपने अनुभव साझा करने लिए कुमार शशि वर्धन ने एक किताब भी लिखी है जो अप्रैल 2018 को प्रकाशित होनी है।
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