पुरुष से महिला बने ***** की जिंदगी में दिक्कतें थमने का नाम नहीं ले रही हैं। कभी सॉफ्टवेयर कंपनी में एग्जिक्युटिव डायरेक्टर रहे ***** सड़क पर फांके की जिंदगी जीने को मजबूर हुए, तो कभी डीटीसी बसों में भीख भी मांगनी पड़ी। समाज में बढ़ते शैक्षिक स्तर के बावजूद ट्रांसजेंडर्स के लिए समाज में स्वीकार्यता फिलहाल बढ़ती नहीं दिख रही है।
जेंडर बदलकर ***** ने जब निरवैर कौर बनने का फैसला लिया तो उनकी कंपनी और घर में माहौल उनके खिलाफ हो गया। बेंगलुरु की कंपनी में एग्जिक्युटिव डायरेक्टर रहे ***** को निरवैर कौर बनने के फैसले के चलते जॉब से रिज़ाइन करना पड़ा और घर भी छोड़ना पड़ा। तंगहाली के वक्त में निरवैर ने डीटीसी बसों में भीख भी मांगी। शिक्षित और योग्य होने के बाद भी निरवैर कौर को कहीं नौकरी नहीं मिल रही है, क्योंकि उनके सभी एजुकेशनल डॉक्युमेंट्स ***** नाम से बने हैं। इन सब दिक्कतों के बाद भी 42वर्षीय निरवैर कौर कहती हैं 'जेंडर बदलने के अपने फैसले पर मुझे जरा भी अफसोस नहीं है। आखिरकार मैं वही हूं, जो मैं हूं। अब मुझे ऐसा नहीं लगता कि मैं किसी और के शरीर में कैद हूं।' सखी की ही तरह देश के अन्य हिस्सों में भी सभी ट्रांसजेंडर्स की एक-कहानी है। उन्हें एक-जैसे ही सामाजिक हालातों का सामना करना पड़ता है।
इस मामले में देश की पहली ट्रांसजेंडर प्रिंसिपल मनाबी बंधोपाध्याय का उदाहरण दिया जा सकता है। हालही मनाबी ने अपने पद से इस्तीफा दिया है। तकरीबन 18 महीने पहले ही मानबी बंदोपाध्याय को पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर वुमन्स कॉलेज की जिम्मेदारी मिली थी। मानबी ने इस्तीफे के पीछे कॉलेज के कुछ टीचर और छात्रों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि कॉलेज के स्टाफ ने उन्हें सहयोग नहीं किया। उनके पदभार संभालने के बाद से ही कॉलेज में उनके खिलाफ खेमेबाजी शुरू हो गई थी। जिस कारण कॉलेज का माहौल खराब हो गया था। अपने खिलाफ घेराव और लगातार हो रहे प्रदर्शनों से तंग आकर मनाबी ने आखिरकार इस्तीफा दे दिया। मनाबी शायद देश की पहली ट्रांसजेंडर हैं, जो किसी शैक्षणिक संस्थान की प्रिंसिपल बनीं।
क्या आप निरवैर कौर की मदद करना चाहते है।
Do you want to help Nirvair, send her email at nirvairtg@gmail.com
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